देवभूमि उत्तराखंड भारत की धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है. यहां स्थित चार धामों में से एक केदारनाथ है, जो कि भगवान शिव को समर्पित है. सनातन धर्म में इसे अत्यंत पवित्र स्थान माना गया है. केदारनाथ सालभर बर्फ की चादर ओढ़े रहता है और सर्दियों में आम श्रद्धालुओं के लिए बंद रहता है. लेकिन ग्रीष्म काल में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं और देश-विदेश से श्रद्धालु बाबा केदार का आशीर्वाद लेने यहां पहुंचते हैं. इस साल 2 को मई को केदारनाथ धाम के कपाट विधिवत रूप से श्रद्धालुओं के लिए खोले गए थे.
केदारनाथ की पदयात्रा गौरी कुंड से शुरू होती है. करीब 17 किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा को शुरू करने से पहले श्रद्धालु यहां संकटमोचन हनुमान के दर्शन करने भी आते हैं. संकटमोचन हनुमान के दर्शन के लिए भक्त लंबी कतार में खड़े रहते हैं. इसे लेकर एक विशेष धार्मिक मान्यता भी है. दरअसल, हनुमान भगवान राम के परम भक्त हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम राम स्वयं भगवान शिव को पूजते थे. ऐसे में हनुमान और शिव भक्तों के बीच यह एक आध्यात्मिक सेतु बन जाता है.
संकटमोचन हनुमान के दर्शन क्यों हैं जरूरी?
केदारनाथ यात्रा शुरू करने से पहले श्रद्धालु उत्तराखंड या आस-पास के क्षेत्रों में स्थित संकटमोचन हनुमान के दर्शन करते हैं. इसके पीछे उनकी गहरी आस्था और आध्यात्मिक विश्वास छिपा है. हनुमान जी को संकटमोचन यानी संकट हरने वाला देवता माना जाता है. कहते हैं कि केदारनाथ जैसे दुर्गम तीर्थ पर जाने से पहले संकटमोचन हनुमान की आराधना करने से यात्रा में आने वाली हर बाधा दूर हो जाती है. फिर चाहे वो प्राकृतिक या मानसिक ही क्यों न हो. श्रद्धालुओं में एक अटूट विश्वास बना रहता है कि संकटमोचन हनुमान केदारनाथ यात्रा में आने वाली हर बाधा का नाश करेंगे.
कितना कठिन है केदारनाथ धाम का रास्ता?
केदारनाथ धाम समुद्रतल से लगभग 11,755 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को गौरीकुंड से करीब 17 किलोमीटर का कठिन ट्रेक पार करना होता है. इस मार्ग में ऊंची चढ़ाई, ऑक्सीजन की कमी, खराब मौसम और बर्फबारी जैसी चुनौतियां आम हैं. इसीलिए भक्त संकटमोचन हनुमान जी से आशीर्वाद लेकर ही इस कठिन यात्रा की शुरुआत करते हैं. केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरी कुंड में इस बार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा रही है. यहां जाम की स्थिति बनी हुई है और व्यवस्थाएं चुनौतीपूर्ण साबित हो रही हैं.