कानपुर में EPFO के रिटायर अधिकारी से 86 लाख की ठगी, रखा 44 दिन डिजिटल अरेस्ट; केवल घर बचा

कानपुर में EPFO के रिटायर अधिकारी से 86 लाख की ठगी कर ली गई. इनकम टैक्स और CBI अफसर बनकर ठगों ने उन्हें 44 दिन डिजिटल अरेस्ट रखा. पहले 50 लाख रुपए ट्रांसफर कराए. फिर 30 लाख की एलआईसी तुड़वा दी. ठगों ने घर में रखी ज्वैलरी पर गोल्ड लोन करवाया और इससे भी 6 लाख हड़प लिए.

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के रिटायर कर्मचारी के घर पर भी लोन कराने की ठगों ने तैयारी की थी  लेकिन इससे पहले वो भतीजे को पूरी घटना बता चुके थे. इसी समझ-बूझ से पीड़ित ने साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराई है.

EPFO के रिटायर अधिकारी की जुबानी: पीड़ित विनोद कुमार झा (68) ने बताया- 17 फरवरी 2025 को एक कॉल आई थी. उधर से बोलने वाले ने खुद को दिल्ली से इनकम टैक्स ऑफिसर संजय त्रिपाठी बताया. उसने कहा कि आपने मेसर्स ग्लोबल ट्रेडिंग कंपनी वजीरपुर नई दिल्ली में खोली है. इसे आपने अभी तक रजिस्टर्ड नहीं कराया है, जिसका 8.62 लाख रुपए कारपोरेट टैक्स बकाया है.

कॉल करने वाले ने कहा कि आप 2 दिन के लिए दिल्ली आ जाइए. मैंने जवाब में कहा- शुगर, बीपी का पेशेंट हूं, इस वजह से आने में असमर्थ हूं. मैंने किसी तरह की कोई कंपनी नहीं खोली है. इस पर सामने वाले ने कहा कि आप ऑनलाइन FIR दर्ज करा दीजिए वरना जेल जाना पड़ेगा.

आपको मैं संबंधित पुलिस अफसर का मोबाइल नंबर दे रहा हूं. उन्हें बताइए कि मेरा नाम अमित चौधरी मनी लॉन्ड्रिंग केस में संदिग्ध के रूप में शामिल किया गया है. इसके बाद पुलिस अफसर से कॉल पर जोड़ दिया गया.

ठगों ने कहा- शिकायत की एक कॉपी इनकम टैक्स को भेज दी: पीड़ित ने बताया- कॉल करने वाले पुलिस अफसर ने कहा कि मामले की शिकायत दर्ज कर ली है. इसकी एक कॉपी इनकम टैक्स को भी भेजी जा रही है. अब आपकी बात इस केस की जांच अधिकारी इंस्पेक्टर विक्रम सिंह से होगी. मेरे पास विक्रम सिंह ने फोन किया और फिर अपनी अधिकारी पायल ठाकुर से बात कराई.

पायल ने बताया- वह सीबीआई में अधिकारी है। उन्होंने इस केस की जांच शुरू कर दी है. मामला 730 करोड़ की टैक्स चोरी का है. इसकी जानकारी किसी को नहीं होनी चाहिए. अगर किसी को इस मामले की जानकारी दी तो 3 साल की जेल और 5 लाख रुपए जुर्माना लगेगा.

विनोद झा ने बताया- मैं बहुत डर गया. मैंने किसी को कुछ नहीं बताया. ठगों ने आईटी डिपार्टमेंट और सीबीआई के जांच वाले लेटर भी भेजे. मुझे लगा सच में कोई जांच चल रही है. अगर यह बात अपने परिवार से बताई तो सभी मुसीबत में पड़ जाएंगे.

49 लाख 50 हजार रुपए RTGS कराए: पीड़ित ने बताया- ठगों ने जांच का हवाला देकर 25 फरवरी को 49 लाख 50 हजार रुपए का RTGS अपने खाते में कराया. जब बैंक अकाउंट खाली हो गया तो ठगों ने पूछा कि आपके पास पॉलिसी के नाम पर क्या है. इसके बाद अपनी और पत्नी की एलआईसी पॉलिसी की जानकारी दी. ठगों ने उसे भी तोड़ने के लिए कहा.

एफडी और एलआईसी के 26 लाख रुपए भी 15 मार्च को अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए. उन लोगों ने घर में रखी ज्वैलरी के बारे में भी जानकारी ली. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं काफी डरा हुआ था. उन्होंने ज्वैलरी के नाम पर भी बैंक से 6.80 लाख रुपए का गोल्ड लोन करवा लिया. इसकी रकम भी 24 मार्च को अपने खाते में ट्रांसफर करा ली.

फ्लैट के नाम पर भी लोन कराने की थी: तैयारी विनोद झा ने बताया- साइबर ठगों ने फ्लैट के पेपर दिखाने को कहा. फिर पूछा फ्लैट किसके नाम पर है. इस पर भी 50 लाख का लोन कराने की बात कही. इसी बीच मेरी पेंशन आने में देरी हुई. इस पर मैंने पीएफ ऑफिस में काम करने वाले भतीजे राजीव झा को कॉल की. उससे पूछा कि 2 अप्रैल हो गए, अभी तक पेंशन नहीं आई.

भतीजे ने मुंबई में रहने वाले अपने बड़े भाई से बात की. जब उन्होंने अकाउंट चेक किया तो सामने आया कि 24 मार्च को चाचा विनोद झा ने 6.80 लाख का गोल्ड लोन लिया है. उन्होंने सोचा कि चाचा ने पूरे जीवन में आज तक कोई लोन ही नहीं लिया. अब ऐसी कौन सी जरूरत पड़ गई कि गोल्ड लोन लेना पड़ा. इसके बाद और अकाउंट की जांच की तो देखा कि करीब 80 लाख का ट्रांजैक्शन हुआ है.

उन्होंने फौरन अपने चचेरे भाई राजीव झा से फोन पर बात की और पूरा मामला बताया. तब सामने आया कि विनोद झा को साइबर ठगों ने 44 दिन से डिजिटल अरेस्ट कर रखा था. साइबर ठगों ने सीबीआई अफसर बनकर उनकी जीवन भर की पूरी कमाई को एक झटके में हड़प लिया.

अगर दो से तीन दिन और जानकारी नहीं होती तो साइबर ठग फ्लैट के नाम पर बैंक से 50 लाख रुपए लोन कराने की तैयारी में थे. साइबर ठगों ने कुल 86.30 लाख रुपए की ठगी की है जिसकी शिकायत उन्होंने साइबर थाना और पनकी थाने में की है.

वर्दी, ऑफिस और CBI का लोगो देख दहशत में आए:  विनोद झा ने बताया कि शातिर ठग वॉट्सऐप ऑडियो और वीडियो कॉल पर बात करते थे. वर्दी में रहते थे, उनकी कुर्सी के पीछे दीवार पर सीबीआई का लोगो लगा था. मेज पर फाइलों के बंडल और पुलिस अफसरों की आवाजाही देखकर उन्हें लगा कि यह सच में दिल्ली सीबीआई का दफ्तर है.

जांच करने का तरीका और आईटी व सीबीआई की जांच वाले लेटर भेजकर इस तरह से ब्रेनवॉश कर दिया कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया. डिजिटल अरेस्ट रखे जाने के दौरान मैंने अपनी पत्नी, बेटों व देखरेख करने वाले भतीजे किसी को भी इसकी जानकारी नहीं दी.

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