उन्नाव से फादर्स डे पर एक ऐसी सच्ची कहानी सामने आई है, जो न केवल भावुक करती है, बल्कि हर बेटे और हर पिता के रिश्ते को एक नई परिभाषा देती है। यह कहानी है डॉ. अमर सिंह और उनके बेटों — रवि और सौरभ की।
जब डॉ. अमर सिंह गंभीर लिवर की बीमारी से जूझ रहे थे और उनकी ज़िंदगी संकट में थी, तब बड़े बेटे रवि सिंह ने आगे बढ़कर अपने लिवर का हिस्सा दान किया। यह निर्णय कोई आसान नहीं था, लेकिन रिश्तों में जब प्यार और कर्तव्य गहराई से जुड़े हों, तो शरीर का एक हिस्सा देना भी छोटा लगने लगता है।
लेकिन इस पूरी यात्रा में जो सबसे कम दिखा, लेकिन सबसे मज़बूती से साथ खड़ा रहा — वह था छोटा बेटा सौरभ। सौरभ ने न केवल ऑपरेशन के दौरान पूरे परिवार को हिम्मत दी, बल्कि अस्पताल से लेकर घर तक हर छोटी-बड़ी जिम्मेदारी खुद निभाई। वह हर उस मोड़ पर चट्टान की तरह डटा रहा, जहाँ परिवार लड़खड़ा सकता था। उसकी मानसिक ताकत और लगातार सकारात्मक सोच ने पूरे माहौल को थामे रखा।
आज जब डॉ. अमर सिंह स्वस्थ हो चुके हैं, तो यह सिर्फ एक चिकित्सकीय सफलता नहीं, बल्कि एक परिवार की एकता, समर्पण और प्यार की जीत है। रवि ने शरीर दिया, सौरभ ने संबल — और दोनों मिलकर यह दिखा गए कि जब बेटे खड़े हों, तो पिता कभी नहीं गिरते।
फादर्स डे पर उन्नाव से यह कहानी हर परिवार के लिए एक संदेश है — कि जब घर के भीतर विश्वास और साथ होता है, तब ज़िंदगी हर लड़ाई जीत सकती है।