असली UPCA कौन? मैदान से बोर्डरूम तक घमासान शुरू

कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) में इन दिनों सियासी पिच पर खेल अपने पूरे रोमांच पर है। पूर्व सचिव स्व. ज्योति बाजपेई के करीबी जीडी शर्मा ने एक समानांतर यूपीसीए का गठन कर यूपी क्रिकेट में भूचाल ला दिया है। उन्होंने न सिर्फ यूपीसीए के लोगो पर हक जताया है, बल्कि बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त मूल एसोसिएशन को सीधी चुनौती दे दी है।

गौरतलब है कि नया संघ अब खुद को वैकल्पिक विकल्प के रूप में पेश कर रहा है और 2025-26 के लिए खिलाड़ियों का पंजीकरण शुरू करने जा रहा है। यानी लड़ाई अब औपचारिक घोषणाओं से मैदान की ओर बढ़ रही है।

‘टैलेंट बनाम तिकड़म’ – नया यूपीसीए क्या बदलेगा सिस्टम?

समानांतर यूपीसीए खुद को उस व्यवस्था के खिलाफ बता रहा है, जहां ‘गॉडफादर कल्चर’ ने असली टैलेंट को किनारे कर दिया। दावा है कि केवल 1500 रुपए में खिलाड़ी को सालभर की ट्रेनिंग, मैच, यूनिफॉर्म और डिजिटल एक्सपोजर मिलेगा।

शर्मा कहते हैं – हम हर जिले में पारदर्शी ट्रायल कराएंगे, और हर प्रदर्शन का लाइव प्रसारण यूट्यूब पर होगा। कोई भेदभाव नहीं।

घोषणाएं आकर्षक, पर वैधता अधर में

खिलाड़ियों और अभिभावकों के लिए ये वादे निश्चित रूप से आकर्षक हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है – जब तक बीसीसीआई की मान्यता नहीं मिलती, तब तक क्या इन टूर्नामेंट्स की कोई वैधता होगी? क्या इन प्रदर्शन के आधार पर खिलाड़ियों का चयन राष्ट्रीय स्तर पर संभव होगा?

गडी शर्मा का जवाब है – “हम मान्यता के लिए प्रक्रिया में हैं।” लेकिन जब तक यह औपचारिक मोहर नहीं लगती, तब तक यह सिर्फ एक कोशिश ही रह जाती है।

मयंक बाजपेई की वापसी – संकेत गहरे हैं

10 मई को ज्योति बाजपेई के बेटे मयंक बाजपेई को समानांतर यूपीसीए में प्रधान सलाहकार बनाया गया। वे यूपीसीए के पूर्व GM भी रहे हैं। जानकार इसे ‘क्रिकेट पॉलिटिक्स’ में बड़े बदलाव की शुरुआत मान रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक यूपीसीए के कुछ पुराने उपेक्षित चेहरे भी अब नए संघ के संपर्क में हैं।

पुराने यूपीसीए पर सवाल बरकरार

वर्तमान यूपीसीए पर वर्षों से टैलेंट की अनदेखी और भाई-भतीजावाद के आरोप लगते आए हैं। कई खिलाड़ी या तो हताश होकर खेल छोड़ चुके या दूसरे राज्यों का रुख कर चुके हैं।

ऐसे में समानांतर यूपीसीए का दावा है कि वे “परफॉर्म करो – मौका पाओ” की नीति पर काम करेंगे।

बड़ी लड़ाई की शुरुआत या भावुक प्रयोग?

बड़ा सवाल है – क्या जीडी शर्मा की अगुवाई वाला यह नया संघ सिर्फ विरोध का प्रतीक बनेगा या असली बदलाव की वजह?

बीसीसीआई में यूपीसीए की पकड़ मजबूत है, खासकर राजीव शुक्ला जैसे वज़नदार चेहरे के कारण। इसके मुक़ाबले नया संघ फिलहाल बिना किसी हाई-प्रोफाइल समर्थन के दिखता है।

अगर परदे के पीछे कोई बड़ा ‘पॉवरप्ले’ नहीं है, तो यह लड़ाई मुश्किल जरूर है।

एक हलचल जो असर छोड़ गई है

भले ही नतीजा जो भी हो, इतना साफ है कि इस समानांतर पहल ने असली यूपीसीए को झकझोर दिया है। अब पारदर्शिता, चयन और सिस्टम सुधार की चर्चा फिर ज़ोर पकड़ रही है।

क्योंकि क्रिकेट का असली मुकाबला सिर्फ मैदान पर नहीं, सिस्टम के भीतर भी होता है।

अब सबकी निगाहें सिर्फ एक सवाल पर हैं – असली यूपीसीए कौन?

रिपोर्ट: विशाल पंडित, खेल पत्रकार

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