नवरात्र के दो दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं, अष्टमी और नवमी तिथि. चैत्र नवरात्र की महाअष्टमी का कन्या पूजन 5 अप्रैल यानी आज होगा और इसे ही दुर्गाष्टमी भी कहते हैं. दुर्गाष्टमी के दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की आराधना की जाती है. इसलिए इसे महाअष्टमी भी कहते हैं. देवी महागौरी की पूजा अर्चना से जीवन में आ रही कई परेशानियों को दूर किया जा सकता है. महाष्टमी को दुर्गा पूजा का मुख्य दिन माना जाता है. तो आइए आज जानते हैं कि कन्या पूजन का मुहूर्त क्या रहने वाला है.
महाअष्टमी शुभ मुहूर्त
महाअष्टमी को दुर्गा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. अष्टमी तिथि 4 अप्रैल यानी कल रात 8 बजकर 12 मिनट से शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 5 अप्रैल यानी आज शाम 7 बजकर 26 मिनट पर होगा.
महाअष्टमी कन्या पूजन मुहूर्त
महाअष्टमी पर आज कन्या पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 59 से लेकर दोपहर 12 बजकर 29 तक रहेगा.
महाअष्टमी कन्या पूजन की विधि
अष्टमी कन्या भोज या पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले आमंत्रित किया जाता है. गृह प्रवेश पर कन्याओं का पुष्प वर्षा से स्वागत करें. नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं. इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से धोएं. इसके बाद पैर छूकर आशीष लें. माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. फिर मां भगवती का ध्यान करके देवी रूपी कन्याओं को इच्छानुसार भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीष लें. आप नौ कन्याओं के बीच किसी बालक को कालभैरव के रूप में भी बिठा सकते हैं.
कैसे किया जाता है कन्या पूजन
चैत्र नवरात्र की अष्टमी पर दिन हवन और कन्या पूजन करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन कन्या पूजन करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि कहा जाता ये छोटी कन्याएं मां दुर्गा की स्वरूप होती हैं. इनका पूजन करना, सम्मान करना मां दुर्गा की पूजा के बराबर माना जाता है.
महाअष्टमी कन्या पूजन के नियम
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है. दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है. चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है.
रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है. छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है. इनका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं. दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है.