आज रंगभरी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. रंगभरी एकादशी का पर्व महाशिवरात्रि के बाद आने वाली एकादशी को मनाया जाता है. इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है. रंगभरी एकादशी का उत्सव वाराणसी में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाती है. इस दिन बाबा विश्वनाथ (शिव) और माता पार्वती के गौना संस्कार की परंपरा निभाई जाती है.
शिवजी और पार्वती जी की साथ में पूजा करें
रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के कई आसान उपाय हैं. उनमें से एक बहुत शानदार उपाय ये है कि इस दिन भक्तों भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना करें. शादीशुदा जीवन में खुशहाली चाहिए तो रंगभरी एकादशी पर शिवजी और पार्वती जी की सच्चे मन से पूजा करें. इससे भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.
रुद्राभिषेक करें
रंगभरी एकादशी पर रुद्राभिषेक करने से महादेव अति प्रसन्न होते हैं. अगर इसके साथ “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जा 108 बार या 1008 बार करें तो भगवान की विशेष कृपा बरसती है. भगवान शिव को प्रसन्न करने का यह एकदम अचूक और आसान तरीका है.
शिवलिंग की पूजा करें
रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव के शिवलिंग स्वरूप का अभिषेक करें. ध्यान दें कि गाय के दूध, शहद, घी, गंगाजल को एक साथ मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें. इससे शिव जी प्रसन्न होंगे और सुखी जीवन का आशीर्वाद देंगे. पूजा में भगवान को फूल, बेल पत्र व नैवेद्य जरूर अर्पित करें.
रंग-बिरंगे फूल करें अर्पित
रंगभरी एकादशी पर रंगों का विशेष महत्व होता है. ऐसे में अगर इस तिथि पर भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं तो रंगीन फूलों को जरूर पूजा सामग्री में रखें. गुलाब, चंपा या चमेली जैसे रंगीन फूलों को अगर शिवलिंग पर अर्पित करें तो भगवान शिव प्रसन्न होकर कृपा करेंगे.
रंगभरी एकादशी का महत्व: रंगभरी एकादशी का शास्त्रों में खास महत्व बताया गया है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद पहली बार काशी आए थे. रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव को गुलाल, अबीर और फूलों से सजाने की परंपरा है. भगवान शिव के आगमन पर उनके भक्त जमकर होली खेलते हैं और रंग गुलाल उड़ाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत-उपासना से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है.
रंगभरी एकादशी व्रत विधि: इस दिन सवेरे स्नान करें और व्रत का संकल्प लें: भगवान विष्णु और शिवजी की विधिवत पूजा करें. भगवान को फल, फूल, पंचामृत, तुलसी पत्ता, धूप, दीप, चंदन, अक्षत, गुलाल और अबीर अर्पित करें. भगवान विष्णु को आंवला और तुलसी अर्पित करना न भूलें. जबकि भगवान शिव और माता पार्वती को गुलाल चढ़ाकर उनकी पूजा करें.
भगवान को प्रसाद का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में वितरित करें. भगवान के मंत्रों का जाप करें. कथा सुनें और रात्रि जागरण करें. अगले दिन सवेरे-सवेरे शुभ मुहूर्त देखकर व्रत का पारण करें और सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें. आप अन्न, वस्त्र, फल या जरूरत की कोई सामग्री दान कर सकते हैं.
पूजा का शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4:59 बजे से 5:48 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12:08 बजे से 12:55 बजे तक
पारण समय 11 मार्च को सुबह 06:11 बजे से 06:43 बजे तक
रंगभरी एकादशी की कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती से विवाह कर लौटे तो उनके गणों ने काशी में उनका गुलाल और अबीर से स्वागत किया. इस उत्सव में शिव-पार्वती ने भी भक्तों के साथ होली खेली. तब से हर साल यह परंपरा बाबा विश्वनाथ की शोभा यात्रा के रूप में मनाई जाती है.
शिव कथा करना और सुनना: रंगभरी एकादशी पर शिव जी की पूजा के समय अगर भगवान शिव की कथा सुने सुनाएं तो बहुत लाभ होगा. शिव महापुराण या अन्य शिव कथाओं का भगवान के सामने बैठकर पाठ करने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं. अगर शिव-पार्वती विवाह की कथा करें तो शिव जी के साथ साथ माता पार्वती भी बहुत प्रसन्न होती है और साधक को अच्छे वैवाहिक जीवन गुजारने का आशीर्वाद देते हैं.