चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है. होली के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाते हैं. इन आठ दिनों में ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है. साथ ही इस दौरान शुभ कार्य करने भी वर्जित माने जाते हैं. इस बार होलाष्टक 7 मार्च यानी आज से शुरू हो रहे हैं और इसका समापन 13 मार्च होलिका दहन के दिन होगा और 14 मार्च को होली मनाई जाएगी.
आखिर होलाष्टक होता क्या है?
मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति होलाष्टक के दौरान कोई मांगलिक काम करता है तो उसे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं व्यक्ति के जीवन में कलह, बीमारी और अकाल मृत्यु का साया भी मंडराने लगता है. इसलिए होलाष्टक के समय को शुभ नहीं माना जाता है.
होलाष्टक का वैज्ञानिक पहलू
होलाष्टक के दौरान मौसम में बदलाव और दिन-रात के तापमान में उतार-चढ़ाव होता है. इससे शरीर में बदलाव और मन में अशांति पैदा हो सकती है. इसलिए, इस समय किए गए कार्यों के परिणाम स्थिर नहीं होते. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, यह समय मानसिक शांति पाने और नकारात्मकता से बचने के लिए बेहतर होता है. इस समय किए गए कुछ सकारात्मक कार्य हमारे जीवन में सुधार ला सकते हैं.
होलाष्टक के दौरान न करें ये काम
1. इस दौरान शादी, विवाह, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया बिजनेस खोलना वर्जित माना जाता है.
2. शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर भी रोक लग जाती है.
3. किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है.
4. इसके अलावा नव विवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है.
होलाष्टक में जरूर करें ये 5 काम
होलाष्टक के दौरान कुछ खास कार्यों को करने से आपके जीवन में समृद्धि और शांति आ सकती है. ये कार्य न केवल आपके भाग्य को संवारने में मदद करेंगे, बल्कि आपको मानसिक शांति भी देंगे. यहां हम आपको पांच महत्वपूर्ण कार्य बता रहे हैं जो आपको होलाष्टक के दौरान जरूर करने चाहिए-
हनुमान चालीसा का पाठ- होलाष्टक के दौरान हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह नकारात्मकता को दूर करने में भी मदद करता है. हनुमान जी की उपासना से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है.
विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय मंत्र का जाप- होलाष्टक में भगवान विष्णु और शिव के नामों का जाप बहुत प्रभावी माना जाता है. विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से जीवन में शांति और समृद्धि आती है. यह मंत्र मानसिक अशांति को दूर करता है और हर कठिनाई से उबरने का साहस देता है.
गरीबों को दान करें- होलाष्टक के दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने से न केवल पुण्य मिलता है, बल्कि यह आपके जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाता है. आप अन्न, वस्त्र और धन का दान कर सकते हैं. ऐसा करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि आपके कर्म भी सही होते हैं.
पितरों का तर्पण- होलाष्टक के दौरान पितरों का तर्पण करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह कार्य आपके पितरों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करता है. तर्पण करने से आपके परिवार की पीढ़ियों को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है.
ग्रह शांति पूजा- होलाष्टक के समय ग्रह शांति पूजा करवाना आपके जीवन में ग्रहों से संबंधित सभी परेशानियों को दूर करता है. इस पूजा से जीवन में आ रही रुकावटें समाप्त होती हैं और नकारात्मक ग्रहों का प्रभाव कम होता है. यह पूजा आपके मानसिक तनाव को भी दूर करती है और जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाती है.
होलाष्टक एक विशेष समय है, जब हमें अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कुछ खास कार्यों को अंजाम देना चाहिए. हनुमान चालीसा का पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम और महामृत्युंजय मंत्र का जाप, गरीबों को दान, पितरों का तर्पण और ग्रह शांति पूजा जैसे कार्यों से आप न केवल अपने भाग्य को संवार सकते हैं, बल्कि अपने जीवन में शांति और समृद्धि भी ला सकते हैं. इस होलाष्टक को सकारात्मकता से भरपूर बनाएं और देखें कैसे आपका भाग्य बदलता है!
होलाष्टक का महत्व
ये आठ दिनों का समय जिसे होलाष्टक कहते हैं वो भक्ति की शक्ति का प्रतीक माना गया है. कहते हैं कि इस समय के दौरान यदि तप किया जाये तो बहुत शुभ होता है. होलाष्टक पर पेड़ की एक शाखा काटकर उसे जमीन में लगाने का रिवाज़ हैं. उसके बाद इस शाखा पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं. बता दें कि इसी शाखा को प्रह्लाद का रूप माना जाता है.
होलाष्टक कथा
होलाष्टक पर एक प्रचलित कथा है कि होलाष्टक के दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था. कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की थी जिसके चलते महादेव क्रोधित हो गए थे. इसी दौरान उन्होंने अपने तीसरे नेत्र से काम देवता को भस्म कर दिया था. हालांकि, कामदेव ने गलत इरादे से भगवान शिव की तपस्या भंग नहीं की थी. कामदेव की मृत्यु के बारे में पता चलते ही पूरा देवलोक शोक में डूब गया. इसके बाद कामदेव की पत्नी देवी रति ने भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की और अपने मृत पति को वापस लाने की मनोकामना मांगी जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था.