सालभर में कुल चौबीस एकादशियां आती हैं और हर एकादशी का अपना अलग महत्व है. इसमें भी माघ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली जया एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. ऐसी मान्यताएं हैं कि जया एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म हत्या आदि जैसे पापों का प्रायश्चित हो जाता है. मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा, प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त मिल जाती है. आइए आपको इस व्रत के बारे में विस्तार से बताते हैं.
जया एकादशी की तिथि: हिंदू पंचांग के अनुसार, जया एकादशी तिथि का आरंभ 7 फरवरी को रात 09 बजकर 26 मिनट पर होगा. जबकि इसका समापन 8 फरवरी को रात 08 बजकर 14 मिनट पर होगा. उदया तिथि के कारण जया एकादशी 8 फरवरी को रखा जाएगा. जबकि व्रत का पारण 9 फरवरी की सुबह होगा.
जया एकादशी व्रत के नियम: जया एकादशी का व्रत दो तरह से रखा जाता है. निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. आमतौर पर पूरी तरह स्वस्थ्य व्यक्ति को ही निर्जल व्रत रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में भगवान श्री कृष्ण की उपासना विशेष फलदायी होती है. इस व्रत में फलों और पंचामृत का भोग लगाया जाता है. इस दिन केवल जल और फल का सेवन करना उत्तम होता है.
जया एकादशी पर क्या करें, क्या ना करें? जया एकादशी के दिन जरूरतमंद लोगों की मदद करने का संकल्प लें. पीपल और केले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं. तामसिक आहार, व्यवहार और विचार से दूर रहें. इस दिन मन को ज्यादा से ज्यादा भगवान कृष्ण में लगाएं. सेहत ठीक ना हो तो उपवास न रखें. केवल व्रत के नियमों का पालन करें. इस चमत्कारी व्रत के महाप्रयोगों का लाभ उठाइए. जया एकादशी के दिन इन बातों का ध्यान रखकर आप अपने तमाम कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं.
नियम और सावधानियां: इस दिन ऐसे व्यक्ति को दान नहीं देना चाहिए जो कुपात्र हो. जो भी वस्तुएं दान में दी जाएं वो उत्तम कोटि की हों. कुंडली में जो ग्रह महत्वपूर्ण हों, उनसे जुड़ी चीजों का दान कभी न करें. दान देते समय मन में हमेशा ये भाव रखें कि ये वस्तु ईश्वर की दी हुई है और ये सेवा या दान मैं ईश्वर को ही कर रहा हूं.